Our Main Objective

  •   एक सूत्र:-हमारा कर्म, धर्म व प्रेम मानवता वाला हो, सेवा भक्ति ज्ञान मानवता के बगैर सम्भव नहीं।
  •   छः वचनः- स्वच्छ सुन्दर करनी रूपी कर्म करते हुए, प्रभु निर्मित
    1. हर एक से प्रेम करना है।
    2. दया, क्षमा, परोपकार से युक्त होकर सेवा करने की विनती एवं प्रेरणा देती है।
    3. जाति-धर्म, ऊँच-नीच, ज्ञानी-अज्ञानी, रूप-रंग, निन्दा-नफरत भोजन-वस्त्र, घृणा-द्वेष का भेद-भाव नहीं रखने या करने की प्रेरणा देती है।
    4. संस्था गृहस्थ जीवन की मर्यादा, गरिमा को निभाते हुए धरती माँ का बोझ नहीं बने, जिज्ञासा स्वरूप प्रेरणा देती है।
    5. एक प्रिय-प्रीतम जो अद्भुत अदृष्य अपार स्वरूप है, उनके ज्ञान का पूर्ण सतगुरू महामानव द्वारा अदृष्य परमात्मा की भक्ति में मार्ग-दर्शन करना एवं अध्यात्मिक तथा संसारिक जीवन में शांति लाना।
    6. इच्छा रूपी मन धनरूपी वैभव तन रूपी शरीर का अहम न करते हुए एक अदृष्य परमात्मा को समझना हैं।
  •   तीन कर्म:-
    1. सेवा
    2. सत्य वचन, सत्य कथा, सत्य विचार एवं सत्संग सुनना है
    3. स्मरण, ध्यान
  •   भक्ति:- सुख-दुःख में रहकर सम्भाव से गृहस्त जीवन की मर्यादा को निभाते हुए परमात्मा से स्नेह एंव ध्यान रखना ही मानव की भक्ति है।।
  •   सेवा:- सेवा से अच्छे मन, कर्म, वचन की उत्पत्ति होती है जिससे यह लोक एवं परलोक दोनों सुहाना होता है।।
  •   धर्मः- दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर, परमात्मा से अरदाश करना एवं मानवीय गुणधारण करना ही धर्म है।।
  •   कर्मः- चरित्रवान एवं ईमानदारी से किया हुआ अच्छा कर्म आपका कर्मफल ही आपका साथी है क्योंकि कर्म दो बातें बताता है या कहता है कर्म एवं कर्म का प्रभाव, कर्म भले ही साधारण हो परन्तु इसका प्रभाव साकारात्मक, उत्पादक, रचनात्मक होना हम सभी को हमारे जीवन के कर्म क्षेत्र में परिवर्तित कर बहुमूल्य मानव की श्रेणी में लाता है।।