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सर्वकल्याण स्तुति
निर्गुण है निर्विकार है तू ही अदृष्य अपार है।
परमपिता परमात्मा सब तेरी संतान हैं।।
अदृष्य में तू सदृश्य हे तेरा रूप अपार है।
कर दें भला सबों का स्वामी तेरी महिमा अपरम्पार है।।
कण-कण में तू अविनाशी है तेरी महिमा क्या गाऊँ मैं।
तीन काल में सत्य है स्वामी तेरी महिमा क्या गाऊँ मैं।।
वेद-ग्रन्थ, देवी-देवता संत-अशुर सब तेरे ही गुण गाते हैं।
तेरी कृपा दृष्टि से मानव, भव सागर तर जाते हैं।।
घट-घट में तू बसा है स्वामी सब तेरा ही रूप है।
तू ही राम, कृष्ण ही तू ही अदृष्य आपार है।।
आकार में तू साकार है स्वामी, सब जगत का पालनहार है।।।
जब-जब जिसने प्रेमभाव तुझको स्वामी पुकारा है।
एक छन भीतर आकर तूने दीन दुखियों का दुःख हारा है।।
प्रेम सर्मपण सेवा सत्संग यही हमार उत्तम कर्म बनें।
एक दूजे का बने सहारा यही हमारा धर्म बने।।
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